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________________ ( 340) पार होकर सहीसलामत बंदर में पहुँच गया / इस जहान में, पंचमहावत अथवा बारहवत रूपी अमूल्य रत्न, दान, शील, तप, माव, ज्ञान, ध्यान, परोपकार और स्वरूप चिन्तवन रूप स्वर्ण, रजतादि माल, मरा हुआ है / इस माल को उतारने के लिए गुरुरूपी कप्तानने आत्मारूपी संठ को सूचित किया / मगर पंचप्रमाद, और तरह काठियाने नो अशुभ कर्म से होते हैंआत्मा-सेठ को केप्टेन की बात पर कुछ ध्यान नहीं देने दिया। वह यही कहता रहा कि, यह खेल पूरा करके माल उतारूँगा / इतने ही में सूर्य अस्त हो ना गया; रात की अंधकार छा गया और अकस्मात तूफान में तमाम बरबाद हो गया / ___ यहाँ मनुष्य जन्म रूपी जहाज है; गुरूवचन केप्टेन की कथन है; संसार चौपड़ है; रागद्वेष पासे हैं; सोलह ऋषायें सोलह सारे हैं; रात्रि मिथ्यात्व है और अकस्मात तूफान मृत्यु है / जीव यदि नहीं समझता है तो जहाज बंदर में से निकल कर बरबाद हो जाता है / लाभ केवल इतना ही है कि, जहान पहिले चला नहीं था तब जीव अव्यवहार राशिवाला गिना जाने लगा है। इस तरह जहाज के डूब जाने से जीव वापिप्त अनंतकाल तक भटकेगा / इसी लिए ज्ञानी पुरुष नवीन नवीन युक्तियों द्वारा समझाते हैं कि,-हे भाई ! प्रमाद न कर / ज्ञान, दर्शन, और चारित्ररूप रत्नत्रय की पवित्रता कर / इनके विना तेरा कल्याण नहीं होगा। निज स्वभाव में मग्न हो / विकथाओं का
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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