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________________ ( 322) गर्ग ऋषि की सम्मति में भी यह बात ठीक है। उन्होंने लिखा है: स्नेहाल्लोमाञ्च मोहाच्च यो विप्रोऽज्ञानतोऽपि वा / शूद्राणामुपदेशं तु दद्यात् स नरकं व्रजेत् // भावार्थ-स्नेहसे, लोभारे, मोहसे या अज्ञान से जो ब्राह्मण शुद्र को उपदेश देता है, वह ब्राह्मण नरक में जाता है। सज्जनो ! ऊपर जो तीन श्लोक दिये गये हैं। उनमें से प्रथम के दो मनुस्मृति के हैं और तीसरा गर्गऋषि का है। ये तीनों, शूद्र को बुद्धि, धर्म और व्रत रूपी रत्न की प्राप्ति के लिए बहुत बड़े अन्तराय हैं; उसको कल्याण रूपी वाटिका में जाने से रोकने के लिए दृढ़ कोट के समान है। या कहो कि, यह ब्राह्मणों के जुल्म का एक नमूना है। जिसको उपदेश देने ही से नरक मिलता है, उनका अन्न खाने से तो न जाने क्या हो जाय ! मगर शूद्रों के अन्न विना जब ब्राह्मणों का पेट नहीं भरने लगा तब, शूद्रों का अन्न पवित्र माना जाने लगा और शुद्रों के कल्याण का मार्ग ब्राह्मणों का पेट भरना मात्र रहा। हाय ! स्वार्थ ! तूने परमार्थ नहीं देखा ! नीति तुझ को याद न रही / तू लोक व्यवहार भूल गया। तुझको यह ध्यान न रहा कि, आगे नीति का जमाना आ रहा है। उक्त श्लोक की टीका करनेवालेने मनुजी के श्लोक का उल्टा अर्थ निकाला है। वह
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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