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________________ ( 320 ) लिखा हुआ है। इसी तरह कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्यकृत त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्रादि में, साधुने धर्मलाभ दिया, ऐसा कथन कई स्थानों में आता हैं / श्रीनेमनाथचरित्र के दसरे सर्ग में चारुदत्त के संबंध में एक, निम्न लिखित, श्लोक आया है: तत्रारूढेन दृष्टश्च कायोत्सर्गस्थितो मुनिः / वन्दितश्च मया धर्मामं दत्त्वेति सोऽब्रवीत् // आदि धर्मलाभ का अधिकार है / इसी तरह दिगंबर भी धमलाभ को प्रमाणभूत मानते हैं / यदि कोइ कदाग्रहप्रस्तः कहे कि, मूल सूत्र में धर्मलाभ कहाँ है ? इसका उत्तर हम इसतरह देंगे कि:__" महानुभाव ! यदि तुम मूलसूत्र के अनुसार ही सारे कार्य करते हो तो तुम्हारा यह प्रश्न ठीक हो सकता है कि, मूलसूत्र में यह है या नहीं। अन्यथा तुम विद्वान मंडली के उपहास पात्र हो। श्रीमहावीर भगवान के शासन में मूलसूत्र, नियुक्ति, भाष्य और चूर्णिकादि सब प्रमाणभूत माने गये है / परमात्मा का शासन हम को राग द्वेष कम करने की सूचना देता है। चाहे कोई हो, यदि वह रागद्वेष से रहित है तो वह मुक्त है। वैष्णव, शैव, बौद्ध, सांख्य, मीमांसक, न कोई भी हो / जो समभाव मावीतात्मा होता हैं,
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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