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________________ (295 ) मिल गया / पाठकों को ध्यान रखना चाहिए कि, पहिलेवाली 200 स्वर्णमहोरें भी भट अपने ही साथ लेता आया था / रानीने महल के सब दर्वाजे बंद करा, ब्राह्मण के साथ वार्ताविनोद प्रारंभ किया / उसमें समय जाता हुआ कुछ भी मालूम नहीं हुआ। ब्राह्मण वार्ता और लोभ के आवेश में सारे विचार भूल गया। दूसरी तरफ राजा संतप्त होकर दर्बार में आया और ब्राह्मण के लिए पूछने लगा। पंडित के पास से दोचार उदाहरण, दृष्टान्त, बातें सुनकर मन प्रसन्न करने के लिए पंडितनी को ढुंढवाने लगा / मगर पंडितजी का कहीं पता नहीं लगा। अन्त में रानाने अपने खास हजूरियों को भेनकर पंडितनी की खोज करवाई तो मालूम हुआ कि, पंडितनी पट्टरानी के महल में गये हैं। यह सुनकर राजा को बड़ा क्रोध आया। वह कहने लगा:" अरे ! पंडित मुझे तो बारबार उपदेश देता है कि, स्त्रीके साथ बोलना नहीं चाहिए; उसके नेत्रों से नेत्र नहीं मिलाना चाहिए; उसके सामने नहीं खड़ा होना चाहिए और उसकी बात भी नहीं सुनना चाहिए / और आप आज मेरी रानी के पास गया है। ऐसे परोपदेश कुशल की तो पूरी खबर लेनी चाहिए।" राजा उठ, नंगी तलवार हाथ में ले अन्तःपुर में गया। और जल्दी से राणी के महल की सीढी पर चढ़ा / रानी समझ गई कि राजा आया है / इतने ही में राजाने आकर दर्वाजा खडखडाया और कहा:-" दर्वाना खोलो ! वह विसंवादी और दुरा
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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