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________________ ( 291 ) ही कर्म बाद में स्पष्ट, निधत्त और निकाचित अवस्था को प्राप्त होते हैं / परिणामों की धारा जैसे क्लिष्ट, क्लिष्टतर और क्लिष्टतम, अथवा शुभ, शुभतर और शुभतम होती है वैसे ही वे बद्ध कर्मों को स्पष्ट, निधत्त और निकाचित बनाती जाती है / तत्ववेत्ता कर्मबंध के समय सचेत होने की सूचना देते हैं / जो मनुष्य कर्भ से मुक्त होता है, उसके सिर पर जन्म, जरा और मरणादि दुःख परम्परा नहीं रहती है / वास्तविक सुख के अभिलाषी और वास्तविक दुःख द्वेषी पुरुष ही जगत में पुरुष गिने जाते हैं। पुरुषों में 72 कलाएँ होती हैं और स्त्रियों में चौसठ / तो भी कुभार्याएँ अपने चरित्र से पुरुषों को दवाती हैं; उनकी निंदा करती हैं; उनको जगत के सामने तुच्छ बनाती हैं; किंकर के समान उन पर हुक्म चलाती हैं; आपत्ति के समय में भी मनमानी चीजें मंगा कर उनको विशेष आपत्ति में डालती हैं और घर में बैठी चैन उड़ाती हैं / इतना ही नहीं वे पतिव्रत धर्म का त्याग कर अनेक प्रकार के कुकर्म करने में भी संकोच नहीं करती हैं। ऐसी कुभार्या की संगति को छोड़ना ही सुख का साधन है। मगर विषय-लंपट पुरुष अंधे की उपमा को धारण करते हैं। अंधे आदमी के हृदय में भी ज्ञान चक्षु का प्रकाश होता है; परन्तु विषयांध पुरुष तो अंदर से सामने आये हुए तत्त्वज्ञान को भी वह नहीं समझ सकता है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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