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________________ ( 283) बहुत भव करेगा / दूसरा सरल स्वभावी परिमित भवों में कर्मों को नाश कर मोक्ष में जायगा / " ____ पाठको ! माया महादेवी का चरित्र हजारों पृष्ठों में लिखा जाय तो भी वह पूरा न हो / मात्र तत्वज्ञानी से ही वह पूरा हो सकता है / माया का जनक अभिमान मोह का मंत्री है। मंत्री वश में आजाय तो राजा भी वश में आजाता है। इसी तरह लोभ और क्रोध भी आत्मा के शत्र हैं। और मोह राजा के शत्रु हैं। विवेकी पुरुषों को शत्रु की सेवा नहीं करनी चाहिए। सूत्रकारोंने आत्महित अति कठिन बताया है। भवभ्रमण करते हुए इस जीवने अनन्त जन्म मरणादि के असह्य दुःख सहे हैं। कईवार वह अपमानित हुआ है, कौड़ी के अनन्तवे भाग में बेचा गया है। और चारों गतियों में पुण्य के अभाव से भव परंपरा पाया है। कहा है कि:--- अस्मिन्नसारसंसारे निसर्गेणातिदारुणे / अवधिर्नहि दुःखानां यादसामिव वारिधौ // भावार्थ-जैसे समुद्र में जलजन्तु असंख्य हैं। इसी तरह स्वभाव से ही अति भयंकर इस असार संसार में दुःख भी सीमा रहित हैं। संसार में यदि कोई सुखी है तो वह जिन-अणगार ही है। उसके विना दूसरा कोई सुखी नहीं है। सुखी पुरुष प्रायःधार्मिक
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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