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________________ ( 278) मगर उस दिन वर्षा न होतो साधु को अत्यंत दुःख होता है। अपने बताये हुए दिन के पहिले दिन और उस दिन आकाश की ओर दृष्टि लगी रहती है। नगर या ग्राम के बाहिर जाकर पवन की भी परीक्षा करनी पड़ती है। इसी प्रकार वस्तुओं का भाव बतानेवाला भी दुर्ध्यानी रहता है। अपना वचन सत्य करने में हजारों जीवों की हानी होगी, इस बात की ओर उस का लक्ष्य नहीं रहता है। अपने वचन की सिद्धि बताने के लिए एकाग्र चित्त से मंत्रादि का भी जप करना पड़ता है। वैसा ही ध्यान यदि आत्मा के लिए किया जाय तो अनादिकाल से पीछे लगे हुए रागद्वेष शत्रु नष्ट हो जायँ / मगर ऐमा भाग्य लार्वे कहासे ? इससे तो मन, वचन और कायका योग उसी ओर लगता है जिससे रागद्वेष की अभिवृद्धि होती है। इसीलिए जिनराजदेवने साधुओं को भविष्य का शुभाशुभ बताने की मनाई की है / यदि साधु हरेक बात जानता हो तो भी उसे कहना नहीं चाहिए / जो अपने शरीर की भी परवाह नहीं रखते हैं; जो वास्तविक साधु होते हैं वे, यशोवाद की कुछ परवाह नहीं करते हैं। उन्हें इस बात का भी आग्रह नहीं होता है कि, ये मेरे भक्त हैं और मैं उनका गुरू हूँ। साधुओं को कपट का त्याग कर आत्महित करने के लिए सूत्रकार फरमाते हैं:
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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