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________________ . ( 273 ) श्रीऋषभदेव और श्रीमहावीरस्वामी के अनुयायी समझना चाहिए;-उन्हीं को संसार से उद्विग्न बने हुए अत्यंत वैराग्य के रंग में रंगे हुए और भली प्रकार से उठे हुए समझना चाहिए। वे परस्पर सारणा, वारणा, चोयणा, परिचोयणा इत्यादिक करें। ___ इन्द्रियाँ पाँच हैं / (1) स्पर्शनेन्द्रिय, (2) रसनेन्द्रिय (3) प्राणेन्द्रिय (4) चक्षुरिन्द्रिय, और (5) श्रोत्रेन्द्रिय / इन पाँच इन्द्रियों के भोग से जीव को पंचेन्द्री की संज्ञा मिलती है। न्यून इन्द्रियवाले जीव अनुक्रम से एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियादि संज्ञा को धारण करते हैं। इन्द्रियों के नाम पहिले बताये गये हैं। उन्हीं के क्रमसे सब की संज्ञा जाननी चाहिए / जैसे एकेन्द्रिय के केवल रसनेन्द्रिय होती है। द्वीन्द्रिय के रसना और घ्राणेन्द्रिय होती है। त्रीन्द्रिय के स्पर्श रसना और घ्राणेन्द्रिय होती है। चतुरेन्द्री के स्पर्श, रसना, घ्राण और चक्षुरिन्द्रिय होती है। और पंचेन्द्री के स्पर्श, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत्र / कई जीवों के कान की जगह बिन्दु के समान एक गुंडीसी होती है। लोगोंमे कहावत हैं, कि-'मीडा उसके इंडा' और ' कान उसके थान ' होते हैं / जीवों के अनेक भेद होते हैं / यह तो हम नहीं कह सकते कि, यह बात तीर्थंकरों के सिवा अन्य के शास्त्रों में है ही नहीं, मगरयह जरूर कहा जा सकता है कि, तीर्थंकरों के सिवा अन्य के 18
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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