________________ व्याकरण के ग्रंथ दाखल कगये; जिनको कलकत्ता की एसियाटिक सोसाइटी ऑफ बेंगालने एशुमीट मेम्बर, जर्मनी की ओरियन्टल सोसाइटीने ओनररी मेम्बर, एवं इटाली की एशीयाटिक सोसाइटीने ओनरी मेम्बर का सम्मानपद दिया था, जिन्होंने सच्चरित्रवाले, त्याग की भावनावाले स्वदेशप्रेमी समाजसेवक विद्वान् तय्यार करने के लिये श्रीवीरतत्त्व प्रकाशक मंडल नामक बड़ी भारी संस्था खोली, ( जो आज यह संस्था शिवपुरी-ग्वालियर में पूर्व और पश्चिम के विद्वानों के लिये भी एक विद्या का धाम बन गई है ) और जिनका महत्त्व पूर्ण चरित्र गुजराती, हिन्दी, मराठी, बंगाली, संस्कृत आदि भारतीय भाषाओं के उपरान्त अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, इटालीयन आदि पाश्चात्य भाषाओं में मी तत् तत् देश के विद्वानोंने लिख कर प्रकाशित कराये हैं, एसे स्वनाम धन्य वर्गस्थ शास्त्रविशारद-जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसुरिजी इस ग्रंथ के निर्माता हैं। सामाजिक, धार्मिक एवं देशोद्धारक कार्यों में रातदिन लगे रहने पर भी आपने करीब दो डझन पुस्तकें महत्त्वपूर्ण लिखी है। जो कि हमारी ही ग्रंथमाला की तरफ से प्रकाशित हुई हैं ! ग्रंथकार महात्माश्री की पुस्तको में कितना महत्त्व है, वे जनता के लिये कितनी उपयोगी हैं, इसका अनुमान तो इस पर से ही हो सकता है कि-उन पुस्तकों की दो दो-चार चारपांच आवृत्तियाँ अभी तक निकल चुकी हैं।