________________ भावार्थ--आप के मुख में सरस्वती बसती है; और करकमल में लक्ष्मी का निवास है / यह देखकर हे राजन् ! तेरी कीर्ति क्या तुझ से नाराज हो गई है, जिससे वह देशान्तरों में चली गई है ? ___ राजा सिंहासन से उतर गया। उस को चारों श्लोकों से अवर्णनीय आनंद हुआ। उसने समस्त राज्य आचार्य महाराज को अर्पण कर, उन के चरणों में सिर नवाँ, कहाः-"मैं आपका सेवक हूँ / जो कुछ आज्ञा हो कीजिए / " ____ आचार्य महाराज बोले:-" हे विक्रमार्क ! हमारे लिए मणि और काच, पत्थर और कंचन सब समान हैं। हमें राज्य क्या करना है ? मैं तोपद्भ्यामध्वनि संचरेय, विरसं भुञ्जीय मैक्षं सकृ जीर्ण प्तिम् निवसीय भूमिवलये रात्रौ शयीय क्षणम् / निस्संगत्वमधिश्रयेय समतामुल्लासयेयाऽनिशं, ज्योतिस्तत्परमं दधीय हृदये कुर्वीय किं भूभुजा // मावार्थ-पैदल चलता हूँ। दिन में एकवार विरस भोजन करता हूँ। जीर्ण वस्त्र पहनता हूँ। रात के समय थोड़ी देर के लिए भूमि पर सोता हूँ। असंग भावना का आश्रय लेता हूँ। रातदिन समता देवी को प्रसन्न करता हूँ और परमन्योति कों हृदय में धारण करता हूँ। फिर मैं राजा बन के क्या करूँगा !