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________________ ( 251 ) अपनी बुद्धि से दूषित नहीं करते हैं / दूषित करने से उक्त महान दोषों का डर रहता है / इसलिए वीतराग की आज्ञानुसार धर्माचरण करनेवाले, असंयम से घृणा करनेवाले मुनियों को चाहिए कि वे स्वमति-कल्पना को छोड़, राजादि के संसर्ग से दूर रह आत्मकल्याण करें / मगर यह कथन एकान्त नहीं है / गच्छनायक, कवित्व शक्तिवाले और वादलब्धि संपन्न राजा के साथ मेल जोल कर सकते हैं / सिद्धसेन दिवाकर और मल्लवादी आदि कई ऐसे महात्मा हो गये हैं कि जिन्होंने, राजाओं के साथ मेल जोल करके उनको सत्यमार्ग पर चलाया है और वीर शासन की प्रभावना की है। यहाँ हम सिद्धसेन दिवाकर का थोडासा हाल लिखना उचित समझते हैं:___“ग्रामानुग्राम विहार करते हुए एकवार सिद्धसेन दिवाकर महाराज उज्जयनी नगरी में गये / रागद्वेष के वश में पड़े हुए कुछ ब्राह्मण उस समय जैनमंदिर की प्रतिष्ठा करने में विघ्न डालते थे / वहाँ के श्रावक लोग आचार्य महाराज के पास गये / उनसे विनती की:-" आप स्वपर समय को पूर्ण जाननेवाले हैं / आप की कवित्व शक्ति अपूर्व है / आप तत्व-विद्या के समुद्र हैं। इसलिए आप राजा को समझाइए / द्वेषीवर्ग के कथन से राजा के हृदय में जैनधर्म प्रति जो विपरीत भाव हो गये हैं उनको निकालिए और राजा को सत्य-धर्म मार्ग दिखा कर हमारा क्लेश शान्त कीजिए।"
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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