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________________ (198) भी शंका को स्थान नहीं है / आजकल के लोग इस बात को सुन कर हँसेंगे; परन्तु जब वे योग के माहात्म्य का विचार करेंगे तब उन का हँसना बंद हो जायगा और वे इस बात की सत्यता को समझने लगेंगे। सब दर्शनकारोंने योग की महिमा का वर्णन किया है। उन्होंने भी अणिमादि आठ सिद्धियां ब. ताई हैं। मगर प्रत्यक्ष प्रमाणसे व्यवहार करनेवाले लोगों की समझ में ये नहीं आतीं / ये बुद्धिगम्य नहीं हैं / तो मी वस्तुतः हैं ये सच्ची / इस लिए शास्त्रकारोंने यथामति इन का वर्णन किया है। इन के नाम मात्र यहां लिखे जायंगे। उन की सत्यता के विषय में इतना कहना आवश्यकीय है कि-शास्त्रों में पदार्थ दो प्रकार के बताये हैं / (1) हेतुसिद्ध और ( 2 ) हेतुगम्य रहित / जो पदार्थ हेतुगम्य नहीं हैं उन में पामर जीवों की बुद्धि काम नहीं देती। हमें पहिले यह सोचना चाहिए कि, इन शास्त्रों के लिखनेवाले कौन हैं ? यह बात यदि हमारे समझ में आ जाय तो सिद्धियों की बात हमें अक्षरशः सत्य मालूम होने लगे। इन अणिमादि आठ सिद्धियों को बतानेवाले, राग, द्वेष रहित सर्वज्ञ और सर्वदर्शी श्रीमहावीर देव हैं। और उन्हीं का अनुकरण बुद्ध और पाताञ्जल आदिने भी किया हैं। वे भी योगरूपी कल्पवृक्ष के पुष्प अणिमादि आठ सिद्धियों को
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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