________________ ( 206) जैनशास्त्र ही इस बात का उपदेश नहीं देते हैं, वेद मनानुयायी भी इसी तरह का उपदेश देते हैं / वे कहते हैं: यदहरेव विरज्येत तदहरेव प्रव्रज्येत / ( जिस समय विरक्ति के भाव आवे उसी समय सन्यासी हो जाना चाहिए।) .. वैरागी पुरुष को दीक्षा लेनेमें बिल्कुल देर न करना चाहिए / वैराग्य आते ही उस को संसारसे बाहिर निकल जाना चाहिए / ऐसे कई उदाहरण हमने देखे हैं कि, निस में वैराग्य आने पर लोगोंने 'क्या होगा ? ' 'कैसे होगा ?' आदि विचार कर के वैराग्य वृत्ति को छोड़ दिया है / और वे वापिस संसार में फंस गये हैं / यहाँ एक दृष्टान्त दिया जाता है। ___" एक खाई थी / उस को दो आदमी लाँधना चाहते थे। कई विचारों के बाद उन्होंने उस को कूद जाने का निश्चय किया / दूर जा कर फिर वेग के साथ दौड़ कर एक खाई को कूद गया / दूसरा भी दौड़ा / मगर दौड़ते हुए उसने सोचा कि, मैं इस को कूद सकूँगा ? इस शंका के विचारसे उस का वेग रुक गया / और आखिर इसी पार उस को किनारे पर खड़ा हो जाना पड़ा / " इस भाँति वैराग्य के वेग में जो दीक्षा ले लेता है वह तो संसार के पार हो जाता है और जो शंकाशील हो जाता है वह