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________________ ( 201) जो लाभकारी कार्य हो वह कर / यदि तू हम को छोड़ देगा तो तू दोनों लोकसे छोड़ दिया जायगा / " ___इस मांति अनेक तरेहसे अनुकूल उपसर्ग कर के माता पितादि नव दीक्षित साधु को पुनः संसार में ले जाने का प्रयत्न करते हैं। सूत्रकारने दूसरे अध्ययन के प्रारंभसे तीसरे अध्ययन के अन्त तक इस का विवेचन किया है / हम यदि उस का यहां पर दिग्दर्शन करा दें तो वह अनुपयुक्त न होगा / दीक्षा के संबंध में कई लोग कई वार साधुओं पर चीढ जाते हैं और उन को गालियां देते हैं। मगर हमें इस में कुछ आश्चर्य नहीं है / क्यों कि यह बात कोई नवीन नहीं है / वीर प्रमु के समय में भी ऐसी बातें होती थीं। भगवान के वचनों पर विश्वास रखनेवाले भी, पुत्रस्नेह के कारण इसी तरह करते थे / इस तरह के स्नेहवश-रागवश-ही अवंति सुकुमाल को उन की माता भद्राने कहा थाः " कोणे तने भोळव्यो, कोणे नाखी भुरकी रे / " (तुझ को किपने भ्रम में डाला है, किसने तुम पर भुरखी डाल दी है ! ) आदि। मोह, अज्ञान मनुष्य से जितने चेष्टाएँ करवाता है, उतनी ही थोड़ी हैं / दीक्षा लेने को तैयार या नवदीक्षित मनुष्य पर, उसके भावों से गिराने के लिए उसके माता, पिता, पुत्र आदि अनेक प्रकार के अनुकूल उपपर्ण करते
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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