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________________ ( 199) खींचता है। हाँ, यदि चुम्बक पत्थर छोटा और लोहे का टुकड़ा बड़ा होता है तो वह उस को अपनी ओर नहीं खींच सकता है / इसी भांति जिस का आत्म-वीर्य प्रकट हुआ होता है उस को मोहनीय कर्म संसार की ओर नहीं खींच सकता है। इतना होने पर भी असर अवश्यमेव होती है / आत्मवीर्य विकसित आत्मा को भी माता पिता आदि का स्नेह होता है; परन्तु वह उस को अपने कर्तव्यसे-धर्मसे-च्युत नहीं कर सकता है। उठियमणगारमेसणं समणं ठाणं ठियं तवस्सिणं। डहर वुड्ढा य पत्थए अवि सुस्से ण य तं लभेज णो // भावार्थ-संसार छोड़ कर साधु धर्म पालने को खडे हुए, निर्दोष आहार का भोजन करनेवाले और अनेक प्रकार के तप करनेवाले अनगार को, अनुकूल उपसर्ग संयम के उत्तरोत्तर स्थानसे, लेशमात्र भी नहीं गिरा सकते हैं। ___ कुटुंबी यदि कहें कि हम तुम्हारे आधार पर हैं; तुम हमारे पालन करता हो; हम को अनाथ स्थिति में छोड़ जाना आप के लिए ठीक नहीं है। आदि बातें कहें तो भी साधु अपने भाव चारित्रसे च्युत नहीं होते हैं / स्त्री पुत्र आदि भी इसी प्रकारसे अनुकूल उपसर्ग करते हैं। कहा है किः जइ कालुणियाणि कासिया जइ रोयति पुत्तकारमे / ___दवियं मिक्खुममुढियं णो लब्भंति ण सठवित्तए // 17 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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