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________________ ( 193) विश्वास नहीं कर सकता कि, मनुष्यों में भी इतनी दृढता हो सकती है / हम उस महात्मा की परीक्षा लेंगे / यदि वह हमारी परीक्षा में पास होगा तो फिर आप की बात को हम सत्य समझेंगे।" इतना कह कर वे इन्द्र की सभा से रवाना हुए / वह मुनि के पारणे का दिन था / मुनि आहार पानीला, आलोचना कर आहार करना ही चाहते थे कि उसी समय एक देव साधु का वेष करके उनके पास गया और बड़े रूखे स्वर में कहने लगाः-" हे दुष्ट ! हे उदरंभरि ! हे कपटपटु ! इसी तरह से करटाचरण करके ही क्या तू लोगों में अपनी कीर्तिलता का विस्तार करता है ? बाहिर उपवन में एक साधु बडी ही खराब हालत में पड़ा है, मारे क्षुधा के उसके प्राण छट पटा रहे हैं। उसके औषध का, आहार का प्रबंध किये बिना ही तू माल उड़ाने बैठा है ! धिक्कार है ! तेरे जन्म को धिक्कार है ! तेरे इस मुनिपन को और धिक्कार है ! तेरी प्रतिज्ञा को / " आगत वेषधारी मुनि के बचन सुन कर नंदन ऋषिने अपने हाथ का नवाला जो, पहिले ही मुँह में रखने को उठाया था-वापिस पात्र में डाल दिया और कहा:-"महानुभाव, शान्ति रखिए / मैं आपके साथ चलता हूँ।" पाठक, एक मास के पारणे के समय इस प्रकार के वचन 13
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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