SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (189) भावार्थ-जैसे भींत पर लगाये हुए चूने या मिट्टी के गिर जानेसे भींग पतली हो जाती है-कमजोर हो जाती है। इसी तरह अनशनादि छः प्रकार के बाह्य तपसे, शरीर कृश होने के साथ ही साथ कर्म भी कृश-कमजोर हो जाते हैं। फिर सर्वज्ञ, वीतराग प्ररूपित अहिंसा प्रधान सर्वोत्तम धर्म की प्राप्ति होती है। त्यागियों के लिए तप का विधान श्रेष्ठ एवं आवश्यकीय है / तप के विना शुद्रतासे ब्रह्मचर्य पालना बड़ा कठिन होता है। गृहस्थ भी यदि भगवानप्ररूपित प्रौषधादिक, पाँचों तिथियों में नियमसे करते रहे तो उन के द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के रोगों की शान्ति हो जाय / द्रव्य रोग को शान्त करने के लिए आजकल बड़े बड़े डॉक्टर भी उपवास करने की शिक्षा देते हैं / अतएव शरीर की रक्षा के लिए भी तपस्या की खास जरूरत है / यदि धार्मिक-विचार दृष्टि से देखेंगे तो भी तप की बात ठीक मालूम होगी। जिस शरीर के लिए दुनिया में बड़े बड़े अनर्थ होते हैं / वह शरीर यहीं पड़ा रह जाता है और आत्मा परलोक में जा कर दुःखी बनता है / आजकल किसी भी समय किसीसे भी पूछो कि वह क्या कर रहा है। तो उस का यही उत्तर मिलेगा कि मैं शरीर को सुखी करने के लिए अमुक क्रिया कर रहा हूँ / कोई कहेगा मैं शरीर में अमुक रोग है उस के लिए दवा कर रहा हूँ, कोई कहेगा मैं थक गया हूँ इस लिए घंटा भर आराम लेने के लिए सोजाता हूँ, कोई
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy