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________________ और दवाई लेने का आग्रह कर रहे थे, परन्तु आप एकके दो न हुए / आपने कहाः " भाई, मरण यह तो प्रकृति है / जन्म लिया है जबसे मरनेका तो निर्माण हो चुका है / और मुझे एक दफे मरना है। उस अवश्यंभावी मृत्यु के लिये मैं क्यों अपना व्रतभंग करूं ? और व्रतभंग करने से मैं बचही जाऊंगा, यह भी निश्चय रूपसे कौन कह सकता है / इसलिये मैं तो अपने नियम में दृढ रहूंगा।" साथ ही साथ आपने यह भी हिदायत दी कि-" यदि मैं असावधानी में आजाऊं, तो भी मुझे कुछ देना नहीं।" व्रत पालन की दृढता इससे अधिक क्या हो सकती है ? अन्तिम श्वास की धोंकनी चलते हुए भी सेठ गोड़ीदासनीने अपना व्रत भंग न हो इसके लिये कितनी सावधानी रक्खी / धन्य है ऐसे महानुभावों को, जो इस जड़वाद के जमाने में भी आखिर समय पर्यन्त 'धर्म' ही मेरा जन्मसिद्ध हक्क और 'जीवनमंत्र' है, ऐसा मानते और आचरते हैं। वही पंचमी की रात्रि थी। ऐसी बीमारी में भी सायंकाल का प्रतिक्रमण सावधानी के साथ किया / तारा खिरा! पश्चात् लगे पंचपरमेष्ठि का ध्यान करने / रात्रि के बारह बजे थे। पंचमी का चंद्र अस्त हो चुका था। रात्रि कालरात्रि सी दिख रही थी। सबको
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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