________________ ( 166 ) क्रोध, मान, माया और लोभका स्वरूप बताया है। इन की निःसारता का विवेचन किया है। इससे पाठकों के हृदय में वैराग्यवृत्ति उत्पन्न हुई होगी-वैराग्य रस चखने की इच्छा उत्पन हुई होगी। अतः उप्तको, हम अगले प्रकरण में भगवान के वैराग्य रस परिपूर्ण वचनों द्वारा, तृप्त कराने का प्रयत्न करेंगे / EN Finanामा