________________ (155 ) , आशाया ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्थ / आशा दासी येषां तेषां दासायते लोकः // भावार्थ-जो आशा के दास हैं वे सब के दास हैं और आशा जिन की दासी है उन के सारे लोग दास होते हैं। धन की आशा, विषय की आशा, और कीर्ति की आशा आदि अनेक प्रकार की आशाएँ होती हैं / उन सबका लोभ सागर में समावेश हो जाता है / आशा विषकी वेल के समान है। विषवेल के खाने से एक ही शरीर छूटता है; परन्तु आशा रूषी वेल के भक्षण करने से अनेक जन्म मरणादि कष्ट परंपरा को सहन करना पड़ता हैं। धन की आशा से मनुष्य खनाने की शोध में फिरता है। भूमि खोदता है; और स्वर्ण बनाने की रसायन प्राप्त करने के लिए अनेक वेषधारी ठगों को सिद्ध पुरुष समझ कर उन की सेवा करता है; उन की आज्ञा पालता है और उन की बताई हुई बू. टियां-जड़ियां-खोजने के लिए भयंकर वनों में और भयानक पर्वत की चोटियों पर जाता है। अपने प्राणों की भी वह बाजी लगा देता है। इस प्रकार से बड़ी कठिनता के साथ जडी ला कर, भट्ठी बनाता है; आग जलाता है और रात दिन उस के सामने खाना, पिना, सोना सब छोड कर, बैढता है; मगर अंत में कुछ न मि