________________ (144) ह, तब छठे गुणस्थानवालों को लोम हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? जिन्होंने संसार छोड़ दिया है और जो त्यागी मुनि बने हैं उनमें जो लोभवृत्ति का विशेष जोर है इसका कारण मोह है / मोहनीय कर्म का जोर तत्वज्ञान के विना नहीं हट सकता है / तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए निःस्पृहता गुण चाहिए और निःस्पृहता ' मेरे तेरे पन से दूर दूर भागता है।" लोभार, मेरे तेरे में गिर मुनि नीचे गिरते हैं। किसी को यश का लोभ होता है, किसी को उपाधि का-पदवी का-लोम होता है, किसी को पुस्तकों का लोभ होता है, किसी को श्रावकों का लोभ होता है और किसी को शिष्यों का लोम होता है। इसी तरह किसी न किसी प्रकार के कुचक्र में फँसकर वे अपना जन्म व्यर्थ गवाते हैं। _' यद्यपि अन्यान्य साधुओं की अपेक्षा मैन मुनि कई मुने त्यागी और वरागी होते हैं, तथापि अनीति से उपार्जन किये हुए पैसों का अन्न-जो वे श्रावकों के यहाँ से लाते हैं-खाकर, वे उल्टे मार्ग पर चलने लगनाते हैं। इसीलिए बड़े लोगोंने कहा है कि, 'जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन्न' और यह कयन सर्वथा ठीक ही है। जो मुनि संपार के कार्यों से सर्वथा मुक्त हो गये हैं; जो