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________________ ( 129 ) करते हैं। क्योंकि यदि वे ऐसा न करें तो लोग उन्हें महात्मा कैसे कहें ? इस प्रकार के महात्माओं को भी नये अनर्थ पैदा करने के लिए दंभ करना पड़ता है। - इसी लिए शास्त्रकार स्पष्टतया पुकार कर कहते हैं कि; भाइयो ! यदि तुम माधुता का निर्वाह नहीं कर सकते हो तो गृहस्थी बनो / ऐसा करने में तुम्हारे बीचमें यदि लाज या कुल की मर्यादा वाधा डालती हो तो निर्दभी हो कर लोगों के सामने स्पष्ट शब्दों में कहो कि,-" मैं साधु नहीं हूँ; साधुओं का सेवक हूँ। " और तदनुसारअपने कथन के अनुप्तार-वर्ताव भी करो। कहा है कि अत एव न यो धर्तु मूलोत्तरगुणानलम् / युक्ता सुश्राद्धता तस्य न तु दम्भेन जीवनम् // 1 // परिहतुं न यो लिङ्गमप्पलं दृढरागवान् / मंविज्ञपाक्षिकः स स्यान्निर्दभः साधुसेवकः // 2 // मावार्थ--इस लिए-जो ( साधु ) मूल और उत्तर गुणों के पालन की शक्ति नहीं रखता है उसको शुद्ध श्रावक बनना चाहिए। ऐसा न कर के दंम के साथ जीवन बिताना सर्वथा अनुचित है। 2 यदि किसी को साधु वेष पर राग हो और वह वेष को नहीं छोड़ना चाहता हो तो फिर वह * संविज्ञ पाक्षिक,
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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