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________________ (99) यशोविजयजी महाराज अपने ' मार्गद्वात्रिंशि का ' नामा ग्रंथ में लिखते हैं: गुणी च गुणरागी च गुणद्वेषी च साधुषु / / श्रुयन्ते व्यक्तमुत्कृष्टमध्यमाधमबुद्धयः // 30 // ते च चारित्रसम्यक्त्वमिथ्यादर्शनभूमयः // अतो द्वयोः प्रकृत्यैव वर्तितव्यं यथाबलम् // 31 // भावार्थ-शृणी, गुणानुरागी और साधु-द्वेषी ऐसे तीन प्रकार के मनुष्य; स्पष्टतया-सुने जाते हैं / वे क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम होते हैं / वे चारित्र, सम्यक्त्व और मिथ्यादर्शन की भूमि पर हैं वे क्रमशः चारित्रवान, सम्यक्त्वी और मिथ्यादृष्टी होते हैं / इस लिए विवेकी पुरुषों को चाहिए कि, वे यथाशक्ति प्रथम के दो प्रकार के मार्गों पर चलने का प्रयत्न करें। भगवान ने क्रोध और मान की व्याख्या करने के बाद माया महादेवी का स्वरूप इस प्रकार प्रकट किया था। माया का स्वरूप। माया का सामान्य अर्थ होता है कपट, प्रपंच, छल, ठगी, दगा, विश्वासघात आदि / जो मनुष्य माया से मुक्त हैं वे
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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