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________________ ( 92) भरत महराजने अन्तःकरण पूर्वक उक्त प्रकार से महात्मा बाहुबली की स्तुति और आत्मनिन्दा की। इससे उन को द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त हुई। फिर वे अपने - स्थान को चले गये। ___ इधर बाहुबली भी श्रीप्रमु के पास जाने का विचार करने लगे। उसी समय मान महाशत्रु उन के आगे आ खड़ा हुआ। वे सोचने लगे कि क्या मैं जाकर अपने छोटे भाइयों कोजिन्होंने मेरे पहिले दीक्षा ग्रहण की है-नमस्कार करूँ ? नहीं। तब मुझ को चाहिए कि मैं पहिले, तपस्या करके अपने घाति कर्मों का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर लें और फिर भगवान के पास जाऊँ। ऐसा सोचकर वहीं खडे हुए ध्यान करने लगे। ___ एक वर्ष पर्यंत आहार पानी लिए विना, वे एक वर्ष पर्यंत स्थाणु-शाखाहीन वृक्ष की भांति खडे रहे / पक्षियोंने उन की डाढी मूंछ में घोंसले बनाये / पशु उन को एक वृक्ष समझ कर, उनके शरीर से अपना शरीर घिस कर, खुजली मिटाने लगे। ___ इस प्रकार की घोर तपस्या करने पर भी मान के कारण बाहुबली को केवलज्ञान नहीं हुआ। अंत में करुणा समुद्र अंत. र्यामी श्रीभगवान ने ब्राह्मी और सुन्दरी को जो पहिले ही से साध्वियाँ हो चुकी थीं, बाहुबली के पास, उन्हें उपदेश देने के लिए भेजा / भगवानने जिस स्थान पर बाहुबली का होना बताया
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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