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________________ (85) अन्तःप्रदेश में हृदय में जिस जिस जगह पर जाति पद आदि आठ मद संबंधी उद्धता-गर्व-उत्पन्न हो; उसी उसी नगह उस का प्रतिकार करने के लिए-उस को नष्ट करने के लिए-मार्दव भावों को भर देना चाहिए। रोग की शान्ति के लिए बुद्धिमान मनुष्य जैसे योग्य औषधोपचार करते हैं; उसी भाँति जहाँ जहाँ आठ मद का संबंध हो, वहाँ वहाँ कोमलता का उपयोग करना चाहिए / मद रूपी रोग को नष्ट करने में मृहुता सर्वोत्कृष्ट औषध है / मृदुता गुण को धारण करनेवाले पुरुष सदैव सुखी रहते हैं। उदाहरणार्थ, एक पुष्प लो / पुष्प की मृदुता जगत में प्रसिद्ध है। भँवरा कठोर से भी कठोर वस्तु को भेद करके उस में प्रवेश करने की शक्ति रखता है। शक्ति ही नहीं, उस का स्वभाव ही ऐसा है; परन्तु वह भी पुष्प को, कोमल स्वभावी समझकर, दुःख नहीं देता है। जब कि भ्रमर के समान प्राणी भी कोमल के साथ कोमलता धारण कर लेना है, तब दूसरे की तो बात ही क्या है ? इसलिए मृदुता धारण करना ही श्रेष्ठ है। कहा है कि सर्वत्र मार्दवं कुर्यात् पूज्येषु तु विशेषतः / येन पापाद्विमुच्येत पुन्यपून व्यतिक्रमात् // भावार्थ-- मृदुता सत्र ही जगह रखनी चाहिए; परन्तु
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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