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________________ (82) यदि उस का गर्व किया जाय, तो निकाचित कर्म का बंध भी हो जाता है / पाठक यदि इसका विचार करेंगे तो कदापि मद् नहीं करेंगे। करुणासागर प्रमु आठवें श्रुत मद का बहिष्कार करने के लिए इस तरह फर्माते हैं:- . स्वबुद्धया रचितान्यन्यैः शास्त्राण्याघ्राय लीलया। सर्वज्ञोऽस्मीति मदवान् स्वकीयाङ्गानि खादति // श्रीमद्गणधरेन्द्राणां श्रुत्वा निर्माणधारणम् / कः श्रयेत श्रुतमदं सकर्णहृदयो जनः ! // ____ भावार्थ-दूसरों के दूसरे आचार्यों के-बनाये हुए शास्त्रों की, निज बुद्धि के अनुसार, खेलसे सुगंध लेकर जो मनुष्य उसका मद करता है। अपने आप को सर्वज्ञ बताने लगता है वह मनुष्य अपने ही शरीर को खाता है-अपनी आत्मा को हानि पहुंचाता है। श्रीमान् श्रेष्ठ गणधरों की रचना-ग्रंथ बनाने की-और धारणा-याद रखने की-शक्ति की बात सुनकर, कौन तात्त्विक अन्तःकरणवाला मनुष्य श्रुतमद का आश्रय लेगा ? कौन अपनी विद्वत्ता का गर्व करेगा ? कोई नहीं ? कुशाग्र बुद्धिवाले आचार्य महाराजों ने अपनी बुद्धि का सदुपयोग कर के, लीलासे, अनेक शास्त्र बनाये हैं। तो मी
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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