________________ हिन्दी-चाल-शिक्षा राहु-मुख--अर्द्धग्रास बनकर मी दिनेश, क्या न तम-राशि का विनाश कर पाता है ? जब तक पावक न भस्मता को प्राप्त होता, क्या न तब तक वह काठ को जलाता है? तब तक वीर धीरता को छोड़ता है नहीं, जब तक नहीं वह मर मिट जाता है। रवि के पालोकको विलोक कोक खिलताथा, .. जल--हीन होने पर वही मुरझाता है / वायु के झकोरे से बचाया जिस प्रश्चल ने, दीपक को, फिर वही उसको बुझाता है। जिस जल-कण ने बचाया प्राण चातक का, बन के उपल वही उसको मिटाता है। सुसमय पा के मानो मित्र-भाव रखताजो, कुसमय पाके वही शत्रु बन जाता है। शत्रु, मित्र, पुत्र, या कलत्र भी किसी के साथ, कोई कभी पाता नहीं प्राण एक आता है। तन मन धन क्या निधन कभी होंगे नहीं, फिर अपकृत्य कैसे मानव को भाता है। धर्म का निदान दया, दान को निधान मान, शुभ कर्म कीजिए जो सब सुख-दाता है / 'काल के कराल गाल में ही लीन होंगे सभी, भूमि पर सुयश, अयश रह जाता है।