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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा मैं उसे बहिन के समान गिनूंगी, और उसका आदर-सन्मान काँगी / क्या अभी भी मेरी प्रार्थना स्वीकृत न होगी? . ___ विजय०- मुझे यह बात नहीं रुचती / क्या प्रात्मवाद की बातें करने वाला जैनपुत्र हाड़-मांस चीथने के लिए तैयारहोगी विजया! मैं इतना अधम नहीं हूँ कि पत्नी-प्रेम के पवित्र भादर्श को कलंकित कर। गृहस्थजीवन में रहकर चतुर्थ पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए तैयारी करना विवाह का लक्ष्य है, भोग-लालसा को चरितार्थ करना नहीं। भोग-लालसा का चरितार्थ करना विषयी पुरुषों के द्वारा उत्पन्न किया हुआ निन्द्यतम विकार है। द्वितीय पाणिग्रहण करना, इस विकार की पुष्टि का स्पर साक्षी है / मैं इसे पाप समझता हूँ / विजया! मुझे इस पापपङ्क में पटकने का प्रयत्न न करो। तुम मेरी उन्नायक हो, तुम्हारे मुख से ऐसी बातें शोभा नहीं देती। विजया, पति का युक्तिपूर्ण उत्तर और अलौकिक दृढ़ता देख चुप हो रही / कुछ देर के लिए सन्नाटा हो गया शान्ति को भंग कर विजयकुमार बोले लेकिन हमें इसकी बहुत सावधानी रखनी चाहिए कि माता-पिता को हमारी प्रतिज्ञा की खबर न होने पावे, यदि खबर पड़ी तो उन्हें बहुत दुःख होगा। "पर छिपा रखना तो बहुत कठिन है / "यदि प्रगट हो जाय, तो मुनिदीक्षा ले लेनी होगी" + + + + आज प्रातःकाल से ही चहल पहल मची है / बालक से लेकर बूढ़े तक सब लोग नगर बाहर चले जा रहे हैं। हर एक की 20
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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