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________________ सेठिया जैन अन्यमाला पल्कलचीरी पोतनपुर पहुंचकर गली 2 दुकान 2 भटकने लगा। उसे जब कोई स्त्री या पुरुष दिखाई देता, वह भ्रात या तात कह कर यथायोग्य वन्दना करता था / भटकते 2 वह वेश्याओं के मुहल्ले में आ पहुँचा / वहां किसी वेश्याने उसे भूला हुआ ऋषितनय समझकर अपने आश्रम में रख लिया / वेश्या की प्रक्रिया से जब यह इन्द्रिय विषय की ओर आकर्षित हो गया तो उसने अपनी पुत्री उसे ब्याह दी। वल्कलचीरी सब कुछ भूल कर गणिकातनया के साथ भोगविलास में मस्त हो गया। ___ राजा प्रसन्नचन्द्र की भेजी हुई वेश्यात्रों ने पाकर उसे सब वृत्तान्त कह सुनाया। प्रसन्नचन्द्र को यह वृत्तान्त सुन वस्कल'खोरी की और भी अधिक चिन्ता सताने लगी। ., कुछ दिन पश्चात वल्कलचीरी का पता चला। राजा प्रसन्न चल ने वश्या को बुलवाया और पूछा--तु ने मेरे भाई को अपनी पुत्री के साथ क्यों ब्याहा ? वेश्या विनय से बोली-भूपाल! इसमें मरा लेशमात्र भी दोष नहीं हैं। मैं जो ऐसा जानती, तो अपनी वेदी राजकुमार के साथ काहे को व्याहती? देवयोग से ही यह बनाव बन गया है / अनजान में जो कुछ हो गया, उसे भी तमा कीजिये। वेश्या को निषि समझ राजा कुछ न बोला, किन्तु मंत्री के साथ जाकर ठाठ से पट्टहस्ती पर बैठा कर वल्कलचीरी को राजमहलों में ले प्राया। इसके बाद राजा प्रसन्नचन्द्र अपने अनुज के साथ मानन्द पूर्वक कालयापन करने लगा। - एक दिन बाल बीरी प्रसन्नचन्द्र के पुत्र को खेला रहा था। खेलाते 2 उसे अपने बाल्यकाल की स्मृति हो उठी। उसने मन ही मन कहा-अभागे वल्कलचीरी! तू कैसा अधम है, तेरे
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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