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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा पाठ 40 वाँ राजर्षि प्रसन्नचन्द्र। दीर्घतपस्वी भगवान महावीर के समय में पोतनपुर नामक एक नगर था। उसमें सोमचन्द्र राजा राज्य करते थे / उनकी पत्नी का नाम धारिगो और पुत्र का नाम प्रसन्नचन्द्र था। किसी समय महारानी धारिणी महाराज सोमचन्द्र के सिर के केश देख रही थी। देखते-देखते उसे एक सफेद बाल दिखाई दिया। गनी ने यह कह कर कि "यह श्रापकी वृद्धावस्था की सूचना करता है", उसे राजा की हथेली में रख दिया / बाल देख राजा को बड़ी कचवाट हुई। उसने कहा-हमारे पूर्वज श्वेत बाल होने से पहले ही राज-पाट छोड़कर प्रवाया अङ्गीकार कर लेते थे। किन्तु मेरे कचों की कचाम का नाश हो गया, तो भी मेरा हृदय दीक्षित होने में कचियाता है। मैं बड़ा अधम हूँ।"इतना कहकर राजा ने राज्य को तिनके की तरह त्याग कर प्रसन्नचन्द्र को राज-काज सौंप दिया और आप परिव्राजक हो गया। उसी समय गनी धारिणी और उनकी धाय राजा के साथ चली राजा सोमचन्द्र ने वन में जाकर तापस के व्रत लिए / गनी धारिणी जब वन में गई, तभी गर्भवती थी। उसमे एक पुत्र का प्रसव हुश्रा / पुत्र के प्रसव होते ही धारिणी का रीगन्त हो गया। तापसों के पास सिवा वल्कल के और धग ही क्या था, जिसमे पुत्र की हिफाजत करते ? प्रत्तपत्र उन्होंने उस नवजात शिशु की वल्कल-वस्त्रों में लपेट रक्खा / इसीसे उसका नाम वल्कलचीरी
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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