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________________ सेठिया जैन प्रत्यमाला कर। दस्युषों- चौरों, लुटेरों / मुँह काला करना- भगाना, हटाना / महामृत बड़ा भारी राजा / विजय-वैजयन्ती-विजय कीपता का / पृथक् २--जुदे२,भिन्न 2 / पहलुमों- तरफों / प्रतिपक्ष-विरोध / एकान्तवाद- वह मान्यता जो वस्तु को पूर्ण रूप से न विचार कर की गई हो, अधूरे को पूरा कहना / चै-मैं- झगड़ा / आग में पानी डालना- झगड़ा मिटाना / लगाव- सम्बन्ध / पाठ 36 वाँ किसान धन्य तुम हे प्रामीण किसान, सरलता-प्रिय औदार्य-निधान / छोड़ जन-संकुल नगर-निवास, किया क्यों विजन ग्राम में गेह? नहीं प्रासादों की कुछ चाह, कुटीरों से क्यों इतना नेह? विलासों की मंजुल मुसकान, मोहती क्या न तुम्हारे प्राण? // 1 // सहन कर कष्ट अनेक प्रकार , किया करते हो काल-क्षेप / धूल से भरे कमो, हैं केश., कभी अगों में पंक प्रलेप /
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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