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________________ (124) सेठिया जैन ग्रन्थमाला इन्द्र०- छोटे हो, चीटी से भी छोटे? शान्ति- नहीं जी, प्रादमी क्या चीटी से छोटे होते है ? मैं तो चीटी से बहुत बड़ा हूँ। इ०- ठीक, बहुत बड़े हो, तो इस भाड़ से भी बहुत बड़े हो? शा०- नहीं, भाड़ से बहुत छोटा हूँ ! इन्द्र०- बस, यही तो मैं भी कहता हूँ / जैसे तुम चीटी से बड़े और वृत्त से छोटे हो उसी प्रकार वह मनुष्य छोटा-बड़ा था / सब ही वस्तुएँ इसी प्रकार की हैं। इसमें किसी . प्रकार का विरोध नहीं होता। .... शा.-- विरोध तो मालूम होता है / टीक समझ में नहीं आता। इन्द्र- देखो भाई ! इनमें विरोध है या नहीं? इस बात को जानने का उपाय यही है कि ये एक जगह रहते हैं या नहीं। यदि एक जगह न रह सकते हों, तो समझना चाहिए कि ये विरोधी हैं / और यदि, एक जगह रह सकते हों, तो उनमें विरोध हो ही नहीं सकता। अनि और पानी एक ही जगह नहीं रहते, इसीसे विदित होता है कि वे विरोधी हैं, सांप और नेवला एकत्र नहीं रह सकते, अतएव वेभी विरोधी है। बडापन और छोटापन यदि विरोधी होते तो एक जगह न रहते / और जय एक साथ रहते ही हैं तो विरोध नहीं हो सकता। सा- तुम अपनी बातों के वात से मुझे अाकाश में उड़ाना चाहते हो / जप छोटे बड़े में विरोध नहीं है तो और जगह भी विरोध नहीं रहेगा / तब तो तुम हो और
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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