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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला जोव से अलग नहीं होता वहां भी वह सदैव बना रहता है / हां इतना अवश्य है कि चेतना रहते हुए भी उतने समय तक जीव उसे पहचान नहीं सकता और वैसे ही भूला रहता है जैसे किसी बालक की वाल्यावस्था में उसके माता पिता चिन्तामणि बांध दें और बालक में समझ पाने के पूर्व ही उनको मृत्यु हो जाय; तो वह चिन्तामणि रहते हुए भी दरिन्द्र और दुःखी रहेगा क्योंकि वह नहीं जानता कि हमारे गले में क्या है और उसका किस प्रकार उपयोग करना चाहिये ! जब कोई जानकार उससे कहेगा तो भी अज्ञान के कारण उसकी उसपर श्रद्धा न होगी और वह नाना प्रकार के कष्ट भोगेगा। उसके अशुभ कर्मों का जोर उसे ज्ञान न होने देगा। इसी प्रकार जीव संसार के मायाजाल में लगा हुआ है वह सद्गुरु द्वारा उपदेश पाने पर भी और चेतना धर्म के पास रहते हुए भी विश्वास नहीं करता। हमारे घर में धन गड़ा हुआ है पर जब तक हमें मालूम न हो, हम उससे क्या लाभ उठा सकते हैं यदि कोई जानने वाजा आदमी कहे प्रो कि तुम्हारे घर में धन गड़ा है और हम उसकी बात पर विश्वास न करें तो धन के गड़े रहते हुए भी हम उसका उपयोग करने से वंचित हैं / यदि उसको विश्शस आगया तो उसका उपयोग कर वह अपने को सुखी बना सकता है। इसी प्रकार चेतनाधर्म सदैव इस जीव के पास ही है। सद्गुरु मिलने पर तथा उसकी बात पर श्रद्धा रखके तदनुसार कार्य करने पर लघुकर्मी जीव चेतना धर्म प्राप्त करके सुखी होजाता है।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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