SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा जानते थे ऐसी अवस्था में बिना जल के उनका जीवित रहना नितान्त असमय था किन्तु प्रकृति ने वहां एक विचित्र रूपधारण किया / वहाँ एक प्रकार के पेड़ थे जो जलवर्षक वृक्ष कहे जाते थे, इन्हीं से प्रचुर जल मिलता था और टापू के निवासियों का सारा काम इन्हीं से चलता था। यात्रियों ने इनका दर्शन किया और उनका हाल भी लिख डाला। इनमें से एक अंगरेज, यात्री श्री लहस जैकसन ने इस अद्भुत वृक्ष के विषय में यों लिखा है___"यह वृक्ष ओक, सिन्दूर, बलूत के समान मोटा, 40-48 फुट ऊंचा और डालियों वाला होता है। इसकी पत्तियों का ऊपरी तल श्याम और भीतरी सफेद होता है / इसमें न तो फूल लगते हैं न फल दिन को पत्तियां सूर्य की कड़ी किरनों से मुलस जाती हैं पर रात को उनसे पानी की बूंदें टपकने ल.वी हैं / हर रात को बादल की टोपी उसके सर पर देखकर आश्चर्य होता है और यह आश्चर्य और भी बढ़ जाता है, जब देखते हैं कि पानी जो जड के पास एकत्र होकर बहने लगता है उस बादल से नहीं पाता बरन पेड़ से एसीजता अर्थात् पसीने सा छूटता है। बहुत जांच के अनन्तर यह निश्चय किया गया है कि प्रत्येक शेड़ से एक रात में कम से कम बीस हजार टन * पानी निकलता है। ये वृक्ष बापू भर में छिटके थे ! इल से निकला हुश्रा इ. 150 मील क धेरे में टापू के रहने वाले नरनारी और पशुयों को ग्राव श्यकता को दूर करता था। जैकसन साहब इस भांति अपने विवरण की समाप्ति करते हैं-"यदि मैंने अपनी आंखों इस पेड़ ... . .. ....insilanani... ...... * एक टन 27 मन हे कुछ अधिक होता है।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy