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________________ (88) सेठिया जैन ग्रन्थमाला प्रदेशी०- महाराज ! एक चोर को मारकर हमने कोठरी में डाल दिया था। कुछ दिनों बाद देखा तो उसका शरीर कीड़ों से भरा हुआ था / दीवारों में एक भी छिद्र न दिखायी दिया कि जिससे उन कीड़ों को कोठरी के भीतर प्रवेश करने की जगह मिलती। इस घटना से मालूम होता है कि उसी शरीर से जीव बन गये होंगे अतः आत्मा और शरीर भिन्न नहीं हैं। केशीश्रमण-भूपाल ! इसका उत्तर पहले हो चुका है। जीव की गति को दीवारों की बात जाने दो, पर्वत भी नहीं रोक सकता। तुमने कभी लोहे का गोला देखा है ? . . प्रदे०- हा महाराज, देखा है। भम०- अच्छा उसमें अग्नि प्रवेश करती है ? प्रदे०- हाँ। भ्रम- क्या उस गोले में छेद होते हैं ? प्रदे०- नहीं। धम- जब मूर्तिक अग्नि गोले में घुस जाती है और गोले में छेद नहीं होता तो श्रमूर्तिक आत्मा कमरे में घुस जाय और कहीं छेद न हो, इसमें आश्चर्य क्या है ? इससे यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि शरीर और प्रात्मा एक ही हैं। . प्रदे० महाराज ! श्राप यह मानते हैं कि प्रात्मा में अनन्त शक्ति है / यदि यह सच है तो एक बूढ़ा आदमी जवान आदमी की तरह बोझ क्यों नहीं उठा सकता? यदि बूढ़े बालक और जवान समान भार उठा सके
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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