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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला तया लोकव्यवहार है वास्तव में हम किसी की आत्मा (जीव) को नहीं देख सकते, केवल उसके शरीर को देख सकते हैं और शरीर तो पुदगल है ही। पुद्गल के दो भेद है / (1) अणु और (2) स्कन्ध / अणु पुद्गल के सब से छोटे भाग को कहते हैं जिसे हम आँख से नहीं देख सकते / स्कन्ध अणुओं के समूह को कहते हैं जो प्राय आखों से दिखायी पड़ता है / पुद्गल में अनन्त शक्ति है ज्ञानावरण, दर्शनावरण इत्यादि जिन पाठों कर्मों का उल्लेख पीछे के एक पाठ में किया गया है, वे एक प्रकार के पुद्गल ही हैं, जो आत्मा के स्वरूप को आच्छादित करके हमें नाना प्रकार के दुख देते और बुरे विचारों में घुमाते हैं। दोनों द्रव्यों के संघर्ष का परिणाम जीव की विकारमयी अवस्था है। मोहन- अच्छा गुरुजी ! धर्म द्रव्य किसे कहते हैं ? / गुरु० - धर्म द्रव्य उसे कहते हैं जो जीव और पुद्गलों के गमन करने में सहायक हो। यह द्रव्य समस्त लोक में व्याप्त है / यदि यह न होता तो जीव और पुद्गलों की गति नहीं हो सकती थी।धर्म द्रव्य किसी को चलने की प्रेरणा नहीं करता, यदि कोई चले तो उसेसहायता पहुँचाता है। जैसे जल मछली की गति में सहायक होता है, विना जल के वह चल नहीं सकती परन्तु चलने के लिए वह जबर्दस्ती नहीं करता / इससे विपरीत अधर्म द्रव्य है / वह जीव और पुद्गलों की स्थिति में सहायक होता है। वह भी प्रेरणा नहीं करता वरन् उस वृक्ष की तरह उदासीनता से सहायता
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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