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________________ (70) सेठिया जैन ग्रन्थमाला कनात से वैण्ड बाजे के शब्द के साथ एक जवान मस्तानी चाल से निकला / उसकी पोशाक सोने के चमचमाते हुए तम गों से भरी थी। चारों ओर घूमकर उसने दर्शकों को नमस्कार किया / नवाब साहब की मोटर की पिछले लोहे की छड़ से एक रस्सा लगाकर उसकी कमर में बांध दिया गया / फिर उसने नवाब साहब से अपनी मोटर तेज करने को कहा। पहली बार मोटर दो चार कदम आगे बढ़ी। लोगों ने समझा राममूर्ति हार गये पर वह जवान हँसते हुए पीछे हटा / इस बार नवाब साहब ने ज्योंही मोटर तेज की वह एक गड़े हुए तख्ते से पैर अड़ाकर लेट गया / जो मोटर दो एक हाथ आगे थी, खिंचकर पीछे आ गयी। नवाब साहब ने मोटर को पूरी ताकत में तेज कर दिया / मोटर उछलने लगी किन्तु राममूर्ति टस से मस न हुए / बेचारे नवाब साहब का मुँह फीका हो गया / राममूर्ति की जीत हुई / दर्शक तालियां पीटने लगे ! फिर राममूर्ति ने एक अपनी मोटर मंगाई / नवान साहब की मोटर और अपनी मोटर दोनों को दो रस्सों में बांधकर उन रस्सों को अपनी कमर से बांधा। तब दोनों मोटरों को उलटी दिशाओं में हांकने की आज्ञा दी / पहले की तरह दोनों मोटरें उछलने लगी किन्तु राममूर्ति जरा भी नहीं डिगे / दर्शकों के आनन्द की सीमा न रही, तालियों की गड़गड़ाहट से तम्बू फटा पड़ता था / आज हिंदुस्तान के घर घर में राममूर्ति का नाम प्रसिद्ध हो गया है। वह हाथो को अपनी छाती पर चढ़ा लेते हैं, 25 घोड़ों की ताकत को दो दो मोटरें रोक लेते हैं। हाती पर बड़ी चट्टान रखकर उस पर पत्थर को टुकड़े२ करवा देते हैं। प्राध इंच मोटी लोहे की जंजीर कमल को डण्डी की तरह आसानी से तोड़ देते हैं, पचास प्राणियों ---- - -
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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