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________________ सेठिया जैन प्रन्थमाला अब इस आक्षेप की निमूलता पर विचार कीजिये / वेद की निन्दा करने वाला नास्तिक है / असल में वेद का अर्थ ज्ञान होता है / इस का अर्थ यह हुआ कि जो ज्ञान की निन्दा करे वह नास्तिक है / यह आक्षेप जैनों पर नहीं आसकता क्योंकि वे शान की निन्दा नहीं करते / यदि वेद का अर्थ ऋग्वेदादि किया जाय तो जैनी भी यह कह सकते हैं कि जो हमारे धर्मग्रन्थों को न माने वह नास्तिक है / यह कौनसा न्याय है कि ब्राह्मणग्रंथों को न मानने वाला नास्तिक कहलाये और जैन-ग्रंथों को न मानने वाला नास्तिक न कहलाए / सच बात तो यह है कि कोई किसी सम्प्रदाय के ग्रंथों को न मानने से ही नास्तिक नहीं कहला सकता / यदि ऐसा हो तो सभी नास्तिक हो जायंगे क्योंकि एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय के ग्रंथों का विरोधी है। दुःख है कि ऐसी लचर दलोले भी विद्वानों के हृदयों में स्थान पा जाती हैं। ___ जैनों को नास्तिक कहने का एक और भी कारण बताया जाता है / वह भी बेसिर पैर काहै। कहा जाता है कि जन ईश्वरको नहीं मानते / आजकल जैन धर्म के अधिकांश ग्रंथ प्रकाशित हो गये हैं। उन्हें पढ़ने का कष्ट उठाने पर सहज ही लोग यह समझ सकते हैं कि जैन ईश्वर को अस्वीकार नहीं करते / कदाचित् यह दोष इसलिये लगाया जाता हो कि जैन ईश्वर को जगत् का निर्माता नहीं मानते किन्तु अजैन धर्मो को मानने वाले कितने ही श्रास्तिक धर्माचार्यों ने ईश्वर को जगद् का कर्ता न मानकर उनका . स्वतंत्र अस्तित्व माना है / हिंदुओं के 6 प्रधान शास्त्रीय धर्मों में प्रधान सांख्यवादी तो ईश्वर को भी नहीं मानते, प्रकृति को . ही अनादि मानकर उसीके परिवर्तन से जगत् की सब वस्तुओं की सृष्टि मानते हैं तो भी उन्हें कोई नास्तिक नहीं कहता, इसी प्रकार
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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