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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (65) तो दूर रही उसमें भ्रष्टता आजाती है / इस दृष्टि से प्राचीनता की रक्षा के लिये भी नियमों और प्रथाओं में परिवर्तन करना श्रावश्यक है और जब संशोधन करना ही है तो भली भांति परिवर्तन करके उन्हें समाज की वर्तमान अवस्था के अनुसार कल्याणकारी बनालेना ही उचित है / तात्पर्य यह है कि जबतक वर्तमान रीति रवाजों का भली भांति संशोधन नहीं किया जाता तब तक उनसे समाज का उपकार नहीं हो सकता। जैसे प्राचीनता-प्रिय व्यक्ति होते हैं, वैसे कोई कोई नवीनताप्रिय भी होते हैं / ये सब नियमों को पुराना और सड़ा हुआ कह कर उनकी भर्त्सना किया करते हैं / ऐसा करना भी उसी प्रकार का भ्रम है, जैसा सब नवीन नियमों की भर्त्सना करना, अतएव प्रत्येक पुराने नियम को त्याज्य समझना भी भूल है / हमारे समाज में अनेक ऐसी बातें हैं जो पुरानी बातों से मिलती जुलती हैं। ऐसी बातों से यदि वर्तमान समाज को लाभ हो तो उनमें परिवर्तन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम पुराने नियमों की जगह नये नियमों की जो स्थापना करना चाहते हैं वह इसलिए नहीं कि पुराने नियम खराब हैं वरन् इसलिए कि यद्यपि किसी समय वे समाज के लिए उपयोगी रहे होंगे परन्तु समाज की वर्तमान स्थिति में वे उसके लिये लाभदायक होने की जगह उलटे हानिकर हो रहे हैं। जो नियम,जो प्रथाएँ,जो आदर्श और जो सिद्धान्त समाज की वर्तमान स्थिति में उसके लिये कल्याणकर हो सके उन्हें श्राश्रय देना और उनका प्रचार करना-चाहे वे नये हों या पुराने--प्रत्येक समाजहितैषी का कर्तव्य है।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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