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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (53) तरह नाना प्रकार की पीड़ाओं से चिलखता है। जैसे अग्नि सब को भस्म कर देती है वैसे ही संसार के विषय-भोग लोगों का विनाश कर छोड़ते हैं / अग्नि में ज्यों ज्यों घी और ईंधन पड़ता है, वह अधिकाधिक प्रज्वलित होती जाती है / संसार में भी ज्यों ज्यों तीन मोहिनी रूप घी और विषय रूपी इंधन पड़ता है, वह बढ़ता जाता है। संसार की तीसरी उपमा अंधकार से दी जाती है। जैसे अंधकार में रस्सी में सांप का भान हो जाता है वैसे ही संसार में सत्य असत्य और असत्य सत्य मालूम होता है। जैसे मनुष्य अंधकार में इधर उधर भटककर पथ भूल जाता है / वैसे हो लोग संसार में अपना अलली मार्ग और उद्देश्य भूलकर विपत्ति भोगते फिरते हैं। अंधकार में हीरा और कांच समान दीखते हैं और दोनों में कौन क्या है इसका निर्णय नहीं होता, वैसे ही संसार में भी विवेक और अविवेक की पहचान नहीं होती / जैसे अन्धकार में अांखों के होते हुए भी प्रादमी अन्धा हो जाता है उसी प्रकार संसार में बुद्धि और शक्ति रखते हुए भी आदमी मोहा-ध और अशक्त हो जाता है। संसार की चौथी उपमा गाड़ी के पहिये की है। जैसे पहिया चक्कर काटता रहता है बैंस ही जीव भी संसार में पागल सा फिरता है। जैसे गाड़ी का पहिया विना धुरी के नहीं चल सकता
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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