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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (37) " पाठ 12 वाँ वीर बालक किसी जाति की रक्षा तभी हो सकती है जब उसकी संतान जाति के हित को सर्वोपरि समझे। जाति का बच्चा बच्चा जब तक अपने जीवन को जाति के हितार्थ भेंट करने को तैयार नहीं होता तब तक जाति रूपी वृक्ष की जड़े कभी दृढ़ नहीं हो सकतीं। मनुष्यों का समुदाय जव किसी देश विशेष में सम उद्देश्य रखते हुए जीवन निर्वाह करता है तभी उसको जाति कहते हैं / यह स्पष्ट है कि यदि उस समुदाय में से एक युरुष भी जाति को हानि करना चाहे तो सरलता से कर सकता है / यही कारण है कि शिक्षा में देश सेवा से बढ़ कर और किसी बात का महत्व नहीं, भारतवर्ष के इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं, जहां देशसेवा सम्बन्धी धर्म की अनभिज्ञता के कारण भारतपुत्रों ने अपनी हो जाति के प्रति विश्वासघात किया जिस का फल हम आज तक भोग रहे हैं / यद्यपि विश्वासघाती जयचंद श्रुतियों और स्मृतियों के उपदेशों से परिचित था और उसके यहां वेदशास्त्रवेत्ता ब्राह्मण मौजूद थे फिर भी सब धर्मो से श्रेष्ठ देशसेवा-धर्म से उसका ज़रा भी परिचय न था / उसकी भूल ने जहां उसका राज्य नष्ट किया वहां उन ब्राह्मणों तथा देवताओं को भी मिट्टी में मिला दिया। न केवल इतना ही वरन् आने वाली भारत संतान के लिये उन्नति का दरवाज़ा भी बंद कर दिया। * इस लेख में जाति शब्द राष्ट्र के अर्थ में आया है /
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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