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________________ (48) सेठियाजैनप्रन्थमाला को खड़ा देख आग बबूला होगया / उसने जोर की फुकार मारी तो वहां का वायुमण्डल विष से नीलार होगया / पक्षी आकाश से गिरने लगे। परन्तु भगवान् ज्यों के त्यों खड़े रहे / यह देख सांप को बड़ा विस्मय हुआ / भगवान् ने उससे कहा--हे चण्डकौशिक! समझ. अब तो समझ.! अपने स्वरूप को पहिचान!!! पहले-पूर्व भव को याद कर / भगवान् के कथन को सुनते ही ध्यान दनपर चगडकौशिक को जातिस्मरगा ज्ञान हुआ तथा फिर वह भगवान् का भक्त होगया। इस प्रकार प्रभु उस सर्प को प्रतिबोध करके श्वेताश्विका नगरी पहुँचे ! सच है-जैसे अग्नि से अग्नि शान्त नहीं होती, उसी तरह क्रोध से क्रोध शान्त नहीं होना, उलटा बढ़ता है / प्रभु के इस बर्ताव से हमें यह सीखना चाहिए कि क्रोध की अग्नि से जलता हुआ मनुष्य यदि हमारे ऊपर भी चिनगारिया उड़ावे, तो उन चिनगारियों को हम अपने क्षमा के जल से वुझा डालें / यदि न बुझाया तो हम भी जलेंगे और अपनी जलन मिटाने के लिये दूसरों पर उन चिनगारियों की वर्षा करेंगे। इससे हमारा और दूसरों का भला थे, अत एव उन्होंने चराडकौशिक को प्रेम के बन्धन में इतने ही से जकड़ लिया / भगवान् के संकटों का अन्त न पाया। एक दिन प्रभु अन्य यात्रियों के साथ, गंगा नदी में नाव पर .चढ़े चले जाते थे / वहां उन के पूर्व भव का बैरी मुष्ट नामक देव रहता था / भगवान् को देखते ही उसे बैर की स्मृति हो उठी। उसने नदी में भयंकर तृफान पैदा कर दिया / नदी का पानी हिलोरें मारने लगा / सब लोगों को जीवन के नष्ट होने की आशंका होने लगी परन्तु परमात्मा
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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