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________________ (30) सेठियाजैमग्रन्थमाला थी। प्राणियों के सौभाग्य से ईस्वी सन् से 598 वर्ष पहले चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भगवान् महावीर का पवित्र जन्म महारानी त्रिशला देवी से हुआ। इसी से यह दिन जैनियों का त्योहार समझा जाता है , और "महावीर जयन्ती” के नाम से अब तक मनाया जाता है / भगवान् के जन्म का उत्सव स्वर्ग के इन्द्रों ने मनाया था / भगवान के पिता महाराज सिद्धार्थ ने पुत्र जन्म की खुशी में खूब उत्सव कराये, और कैदियों को छुटकारा देदिया / वह समय बड़ा ही अनोखा, बड़े आनन्द का और बड़े सौभाग्य का था। ___ धोरे धीर भगवान् अपनी बाल-लीलाओं से माता पिता का मन मोहित करते हुए बढ़ने लगे / जब चलने फिरने योग्य हुए, तो अपने साथी सङ्गियों के साथ इधर उधर घूमने लगे। वे उस समय बालक ही थे, पर उनका पराक्रम अतुल था। कैसा ही कार्य क्यों न हो , कभी हिम्मत नहीं हारते थे / एक समय की बात है- भगवान् अपने साथियों के साथ खेल खेल रहे थे / वे और उनके साथी उमङ्ग में आकर एक बड़ के वृक्ष पर चढ़े / एक देव ने उनके बल की परीक्षा लेने की इच्छा से नाग का रूप धारण किया, और डरावना फण फैलाकर वृक्ष को घेर लिया / साथी लड़के यह हाल देखकर सुन्न रह गये / किन्तु भगवान् तो बली थे, वे निडरता से लीला पूर्वक नाग के फण पर दोनों पैर रखकर नीचे उतर आये / कहते हैं उसी समय नाग भेष धारी देव ने उनकी वीरता से प्रसन्न होकर 'महावीर' नाम रक्खा / सत्र है-पराक्रमी पुरुषों से डर ही डरता है / वे डर से नहीं डरते / शास्त्रों में लिखा है कि भगवान् जब शिशु थे, तब भी
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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