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________________ हिन्दी-पाल-शिक्षा था,इससे रुपा राज्य की अधिकारिणी हुई / रुपा अब रानी होगई। वह क्रमशः राज्य करते 2 युवती हुई / एक वार राजसभा में शीलसन्नाह नामक मंत्री बैठा था ! उसके सामने रुपा ने राग भरी दृष्टि से देखा / मंत्री ने रुपा का अन्दरूनी विचार समझ लिया। यह बड़ा ही शीलवान् था / उसने सोचा-कोई कितना ही बवे पर काजल की कोठरी से विना दाग लगे नहीं बच सकता। इसलिये मुझे अपने ब्रह्मचर्य की रक्षा करने के लिये यह स्थान छोड़ देना चाहिए / यह विचारकर शीलसन्नाह अपनी आजीविका को लात मारकर वहां से चल दिया / सच है संयमी पुरुष अपने सदाचार के लिये क्या नहीं छोड़ देते ! अर्थात् वे सब कुछ त्यागकर भी संयम की रक्षा करते हैं। शीलसन्नाह रुपा का राज्य छोड़ अन्यत्र जा विचारसार राजा को नौकरी करने लगा ! वहां रहते 2 जब कुछ दिन बीत गये, तब विचारसार ने उससे कहा--"शीलसन्नाह ! पहले तुम जिस राजा के यहां काम करते थे, उसका क्या नाम है" ? शीलसन्नाह ने उत्तर दिया- "नरनाथ ! मैं ने जिस राजा को पहले सेवा की थी, उसका नाम भोजन करने से पहले लेना योग्य नहीं है / नाम लेने से दिन भर अन्न से भेंट नहीं होती"। यह कहकर शीलसन्नाह ने रुपा का सिक्का दिखला दिया / राजा शीलवान् शीलसन्नाह की बात सुन बड़ा विस्मित हुआ / उसने मंत्री के कथन की जाँच करने के इरादे से राजसभा ही में भोजन की सामग्री मँगाई और हाथ में कौर लेकर बोला-"अब उस राजा का नाम लो" / मंत्री ने ज्यों ही "रुपी राजा" कहा त्यों ही दूत ने पाकर खबर दी कि "अपने मगर को शत्रु राजा ने घेर लिया है। दूत की बात सुन राजा
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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