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________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला (3) सेवा-इस बात का विचार करो कि छुटपन में तुम्हारे लिये माता-पिता ने क्या 2 कष्ट नहीं सहे / पुत्र आजीवन कष्ट सहकर सेवा करे तो भी उनके करों का बदला नहीं चुका सकता फिर उन्होंने तो हमें जन्म दिया है, उस अलोकिक उपकार का कहना ही क्या है ! इसलिये पुत्र का कर्तव्य है कि उनकी चिन्ता सदा रक्खे, हृदय से सेवा करे और सदा प्रसन्न रकग्ने / __ (4) आज्ञापालन - बालकों को अपने मा - बाप की प्राशा माननी चाहिए और तुरन्त माननी चाहिए / इस बात का विचार मत करो कि आशा मानने से क्या 2 कष्ट भोगने पड़ेंगे मा-बाप स्वभाव से ही तुम्हारा भला चाहते हैं / वे कभी ऐसी आशा देवेंगे ही नहीं कि जिससे तुम्हें कष्ट सहना पड़े। दृढ़ विश्वास रक्खो कि उनकी प्राज्ञामानने से हमारा हित ही होगा। देखो,रामचन्द्रजी ने पिता की आज्ञा मानकर वनवास स्वीकार किया था। अगर वे ऐसा न करते तो क्या कोई उनकी बड़ाई करता? कभी नहीं / इसलिये बालको! माता-पिता को किसी प्रकार दुःखित न करना चाहिए; उन्हें सब से अधिक प्रिय जानना, क्योंकि जान माल प्रादि सब पदार्थ तुम्हें इनसे ही मिले हैं। यह मत समझो कि माता-पिता का भरण-पोषण कर देने में ही तुम्हारा कर्तव्य समाप्त होगया / क्योंकि भरण-पोषण जानवरों का भी किया जाता है, फिर भक्ति विना दानों में अन्तर हो क्या रहा? विना भक्ति भरण-पोषण सच्ची सेवा नहीं कहलाती / इसलिये माँ-बाप के मन की बात ताड़कर काम करे वही उत्तम पुत्र है। जो माता पिता के कहने से काम कर.वह मध्यम पुत्र है। श्रद्धाविना जो काम करे, वह अधम है और माता-पिता के कहने पर भी जो कभी न करे वह अधमाधम अर्थात् अत्यन्त नीच है। हरएक बालक
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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