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________________ सेठियाजैनग्रन्धमाला ___ बालको! विनय का माहात्म्य अपरम्पार है। इस बात का विचार करो कि कहां तो मगधदेश के विशाल साम्राज्य का अधिपति श्रेणिक और कहां शूद्रजातीय चाण्डाल / परन्तु विद्या पढ़ने के लिये श्रेणिक को भी चाण्डाल का विनय करना पड़ा। इससे हमें यह सीखना चाहिए कि हम गुरुओं का विनय करें। एक जगह लिखा है कि विनयी विद्यार्थी को गुरु की भक्ति करनी चाहिए / गुरुभक्ति से विद्या आती है। विद्या से चालचलन सुधरता है / चालचलन सुधरने से बुरे कर्म नहीं पाते और क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति होती है। ठीक ही है बिनय से क्या 2 नहीं मिलता अर्थात् सब कुछ हिल सकता है। जो विनयी होता है वह सब का प्रेमपात्र हो जाता है। विनय सब गुणों में मुख्य है। विनय के विना तुम कोई शुरण नहीं प्राप्त कर सकते और यदि प्राप्त कर भी लो तो उसकी कीमत नहीं होती। देखो, जब अांधी आती है, तब बेंत का वृक्ष, जो कि नम्रता धारण कर लेता है. संकुशल खड़ा रहता है, किन्तु सागौन प्रादि के वृक्ष जो ज्यों के त्यों ऊंचा लिर किये हुए खड़े रहते हैं, ये उखड़कर गिरजाते हैं / इस से यही आशय निकलता है कि बड़ों के सामने नम्रता धारण करना चाहिए / अतएव माता पिता विद्यागुरु आदि जो कोई तुम से बड़े हों, उनका विनय करो / विनय सब सुखों का घीज है। पाठ 3 माता पिता की सेवा. . संसार में जितने सम्बन्ध हैं, उन सब से माता पिता और पुत्र का सम्बन्ध सब से ऊँचा, सब से पवित्र और सबसे अधिक
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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