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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा होकर सुख में मग्न न फूलें, दुख में कभी न घबरायें; पर्वत नदी श्मशान भयानक. अटी से नहिं भय खावे / रहे अडात अकंग निरन्तर, यह मन दृढ़तर हो जावे; इष्ट--वियोग अनिष्ट-योग में, सहनशीलता दिखलावें।। सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे; वैर पाप अभिमान छोड़ जग, नित्य नये मंगल गावे / घर घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावें; ज्ञान चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म - फल सब पावें॥ (10) ईति भीति व्याघे नहिं जग में, वृष्टि समय पर हुआ कर; धर्म - निष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे / रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे; परम अहिंसा--धर्म जगत में, फैल सर्वहित किया करे // फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह : दूर सब रहा कर अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहिं, कोई. मुख से . कहा. करे / घन कर सब 'युग--धीर' हृदय से देशोन्नति रत रहा करें; वस्तु- स्वरूप विचार खुशी से, सब दुख संकट सहा करें। ..--- पं० जुगलकिशोर मुख्त्यार / -काल
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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