________________ [60] सेठियाजैनग्रन्थमाला चमकीले वस्त्र बनते हैं। पर ऐसे बहुत कम लड़के होंगे, जो रेशम के बनने की रीति जानते हों। इस पाठ में वही रीति बताई जायगी। रेशम एक प्रकार के कीड़े से निकलता है / ये कीड़े प्रायः भारतवर्ष, चीन और यूरप के बहुत से देशों में होते हैं। ये कीड़े शहतूत और रंड के पत्ते खाते हैं / जो लोग इन कीड़ों को पालते हैं, वे शहतूत और रेंड के पेड़ लगाते हैं। जो कीड़े शहतूत के पत्ते खाते हैं, उनसे बारीक और अच्छा रेशम निक लता है / परन्तु जो रेंड़ के पत्ते खाते हैं, उनसे मोटाझोंटा और भद्दा रेशम निकलता है / रेशम के कीड़े पहले पहल अंडे की तरह होते हैं। फिर उनसे कीड़े निकलते हैं / इसके बाद जब कीड़ा बड़ा हो जाता है, तो अपने बचाव के लिये वह एक ढक्कन सा बनाता है। इसी ढ़कने से रेशम बनता है / ढक्कन कबूतर के अंडे जितना बड़ा होता है। इस के पश्चात् वह कीड़ा तित. ली सरीखा बन जाता है , तब वह अंडा देता है। जब वे अंडे फूटने वाले होते हैं, तब उन्हें बड़े तख्तों पर फैला देते हैं / और ऊपर तथा नीचे शहतृत या रेंड की पत्तियों की कतली भुरक देते हैं। कीडे अंडों से निकलते ही पत्तियां खाने लगते हैं। रोज़ रोज़