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________________ [50] सेठियाजैनग्रन्थमाला 5 जहां देह अपनी नहीं, तहां न अपना कोय / घर संपति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय // 5 // 6 दिपै चाम चादर मढ़ी, हाड़ पीजरा देह / / भीतर या सम जगत में, और नहीं घिन गेह॥६॥ सोरठा 7 मोह नींद के जोर, जगवासी घूमें सदा / कर्म चोर चहुँ ओर,सरवस लूटें सुधि नहीं // 7 // 8 सतगुरु देय जगाय, मोह नींद जब उपशमे / तब कछु बनै उपाय, कर्म चोर आवत रुकें // 8 // 9 ज्ञान-दीप तप-तेल भर, घर सोधैं भ्रम छोर / या विधि पिन निकसै नहीं, पैठे पूरब चोर // 9 // पंच महाव्रत संचरण, समिति पंच परकार / प्रबल पंच इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार // 10 // 10 चौदह राजु उतंग नभ, लोक पुरुष संठान // तामें जीव अनादित, भरमत है विन ज्ञान // 11 // 11 धन तन कंचन राज सुख,सबहि सुलभ कर जान दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान // 12 // 12 जांचे सुरतरु देय सुख, चिंतत चिन्तारैन / विन जाचे विन चिंतए, धर्म सकल सुख दैन // 13 //
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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