________________ [48] सेठियाजैनग्रन्थमाला जगत्में जितने अत्याचार जितने अन्याय और जितने पाप होते हैं, उन सब का प्रायः धन से सम्बन्ध होता है / परन्तु जो आत्म-हितैषी चतुर और उदार होते हैं, वे भयानक आपत्तियों का सामना करते हुए भी अन्याय से धनोपार्जन नहीं करते / बल्कि न्याय से जितना धन कमाते,उसीसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेते हैं / जो लोग व्यर्धव्यय नहीं करते वे थोड़े धन से भी अपनी गृहस्थी बखूबी चला सकते हैं। बुद्धिमानों को चाहिए कि अनेक कठिनाइयों से अर्जन किये हुए धन को, यों ही न उड़ा दें। लेकिन ऐसे कामों में खर्च करें, जिससे बहुत जीवों को बहुत दिनों तक लाभ मिल सके और पुण्य तथा यश की वृद्धि हो। जैसे---विद्या की वृद्धि के लिये विद्यालय खुलवाना या उनको सहायता करना,पुस्तकें दान देना,कठिन शास्त्रोंको सरल कराकर सब के पढ़ने योग्य बनाना, रोगियों के लिये प्रोषधालय खोलना, या औषधालयों में सहायता देना / आज कल बेचारी विधवाओं की बहुत दुर्दशा हो रही है।लोग उनकी शिक्षा दीक्षा की परवाह कम करते हैं। उनके उपकार के लिये विधवा-आश्रम खोलना या